16-05-77  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

माया के वार का सामना करने के लिए दो शक्तियों की आवश्यकता

मास्टर नॉलेजफुल, सदा सक्सेसफुल, सदा हर्षित बनाने वाले अव्यक्त बाप-दादा, मंजिल के समीप पहुँची हुई आत्माओं प्रति बाबा बोले-

बापदादा सभी बच्चों के पुरूषार्थ के रफ्तार की रिजल्ट देख रहे थे। नए अथवा पुराने, दोनों की पुरूषार्थ की रफ्तार देखते हुए, बाप को बच्चों पर अति स्नेह भी हुआ और साथ-साथ रहम भी हुआ। स्नेह क्यों हुआ? देखा कि छोटे-बड़े परिचय मिलते, परिचय के साथ अपने यथा शक्ति प्राप्ति के आधार पर पास्ट लाईफ (Past Life;गत जीवन) और वर्तमान ब्राह्मण लाइफ, दोनों में महान अन्तर अनुभव करते, भटकते हुए का सहारा दिखाई देते हुए, निश्चय बुद्धि बन, एक दो के सहयोग से, एक दो के अनुभव के आधार से मंजिल की ओर चल पड़े हैं। खुशी, शक्ति, शान्ति वा सुख की अनुभूति में कोई लोक-लाज़ की परवाह न करते हुए, अलौकिक जीवन का अनुभव कदम को आगे बढ़ाता जा रहा है। प्राप्ति के आगे कुछ छोड़ रहे हैं वा त्याग कर रहे हैं, कोई सुध-बुध नहीं रहती। बाप मिला सब कुछ मिला, उस खुमारी वा नशे में त्याग भी, त्याग नहीं लगा, याद और सेवा में तन-मन-धन से लग गए। पहला नशा, पहली खुशी, पहला उमंग, उत्साह, ‘न्यारा और अति प्यारा’ अनुभव किया। यह त्याग और आदिकाल का नशा, त्रिकालदर्शी मास्टर ज्ञान सागर, मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति का पहला जोश जिसमें कुछ होश नहीं, पुरानी दुनिया का सब कुछ तुच्छ अनुभव हुआ, असार अनुभव हुआ। ऐसी हरेक की पहली स्टेज देखते हुए अति स्नेह हुआ कि हरेक ने बाप के प्रति कितना त्याग और लगन से आगे बढ़ने का पुरूषार्थ किया है। ऐसे त्यागमूर्त्त, ज्ञान मूर्त्त, निश्चय बुद्धि बच्चों के ऊपर बाप-दादा भी अपने सर्व सम्पत्ति सहित कुर्बान हुए। जैसे बच्चों ने संकल्प किया, ‘बाबा! हम आपके हैं।’ वैसे बाप भी रिटर्न में (बदले में) यही कहते कि, ‘जो बाप का सो आपका’, ऐसे अधिकारी भी बने, लेकिन आगे क्या होता है? चलते-चलते जब महावीर अर्थात् रूहानी योद्धा बन माया को चैलेंज (चेतावनी) करते हैं, विजयी बनने का अधिकार भी समझते हैं लेकिन माया के अनेक प्रकार के वार को सामना करने के लिए दो बातों की कमी हो जाती है। वह दो बातें कौन सी हैं? ‘एक सामना करने की शक्ति की कमी, दूसरा परखने और निर्णय करने की शक्ति की कमी।’ इन कमियों के कारण माया के अनेक प्रकार के वार से कब हार, कब जीत होने से कब जोश, कब होश में आ जाते हैं। सामना करने की शक्ति न होने का कारण? बाप को सदा साथी बनाना नहीं आता है, साथ लेने का तरीका नहीं आता। सहज तरीका है - ‘अधिकारीपन की स्थिति।’ इसलिए कमज़ोर देखते हुए माया अपना वार कर लेती है।

परखने की शक्ति न होने का कारण? बुद्धि की एकाग्रता नहीं है। व्यर्थ संकल्प वा अशुद्ध संकल्पों की हलचल है। एक में सर्व रस लेने की एकरस स्थिति नहीं। अनेक रस में बुद्धि और स्थिति डगमग होती है। इस कारण परखने की शक्ति कम हो जाती है। और न परखने के कारण माया अपना ग्राहक बना देती है। यह माया है, यह भी पहचान नहीं सकते। यह रांग (गलत) है, यह भी जान नहीं सकते। और ही माया के ग्राहक अथवा माया के साथी बन, बाप को वा निमित्त बनी हुई आत्माओं को भी अपनी समझदारी पेश करते हैं कि - यह तो होता ही है, जब तक सम्पूर्ण बनें तक यह बातें तो होंगी। ऐसे कई प्रकार के विचित्र प्वाइंटस (संकेत) माया के तरफ से वकील बनकर बाप के सामने वा निमित्त बने हुए के सामने रखते हैं। क्योंकि माया के साथी बनने के कारण आपोजीशन पार्टी (Oppossition Party;विरूद्ध दल) के बन जाते हैं। मायाजीत बनने की पोजीशन (Position;स्थिति) छोड़ देते हैं। कारण? परखने की शक्ति कम है।

ऐसे वन्डरफुल (Wonderful;आश्चर्यजनक) और रमणीक केस बाप-दादा के सामने बहुत आते हैं। प्वाईन्टस भी बड़ी अच्छी-अच्छी होती हैं। इनवेन्शन (Invention;आविष्कार) भी बहुत नई-नई करते हैं, क्योंकि बैकबोन (Backbone) माया होती है। जब बच्चें की ऐसी स्थिति देखते हैं तो रहम आता है, बाप सिखाते हैं और बच्चे छोटी सी गलती  के कारण क्या करते रहते हैं? छोटी सी गलती  है, श्रीमत में मनमत मिक्स (Mix;मिलाना) करना। उसका आधार क्या है? ‘अलबेलापन और आलस्य।’ अनेक प्रकार के माया के आकर्षण के पीछे आकर्षित होना। इसीलिए जो पहला उमंग और उत्साह अनुभव करते हैं, वह चलते-चलते, मायाजीत बनने की सम्पूर्ण शक्ति न होने के कारण कोई पुरूषार्थ हीन हो जाते हैं। क्या करें, कब तक करें, यह तो पता ही नहीं था? ऐसे व्यर्थ संकल्पों के चक्कर में आ जाते हैं। लेकिन यह सब बातें साइडसीन (Sight Seeing) अर्थात् रास्ते के नज़ारे हैं। मंजिल नहीं है। इनको पार करना है, न कि मंजिल समझकर यहाँ ही रूक जाना है। लेकिन कई बच्चे इसको ही अपनी ही मंजिल अर्थात् मेरा पार्ट ही यह है, वा तकदीर ही यह है, ऐसे रास्ते के नज़ारे को ही मंजिल समझ वास्तविक मंजिल से दूर हो जाते हैं। लेकिन ऊँची मंजिल पर पहुँचने से पहले आँधी तूफान लगते हैं, स्टीमर (Steamer;जहाज) को उस पर जाने के लिए बीच भँवर में क्रास (Cross;पार) करना ही पड़ता है। इसलिए जल्दी में घबराओ मत, थको मत, रूको मत। भगवान को साथ बनाओ तो हर मुश्किल सहज हो जाएगी। हिम्मतवान बनो तो मदद मिल ही जायेगी। सी फादर (See Father) करो। फॉलो फादर (Follow Father) करो तो सदा सहज उमंग उल्लास जीवन में अनुभव करेंगे। रास्ते चलते कोई व्यक्ति वा वैभव को आधार नहीं बनाओ। जो आधार ही स्वयं विनाशी है, वह अविनाशी प्राप्ति क्या करा सकता। ‘एक बल एक भरोसा’ इस पाठ को सदा पक्का रखो, तो बीच भँवर से सहज निकल जायेंगे। और मंजिल को सदा समीप अनुभव करेंगे।

सुना, यह थी पुरूषार्थियों की रिजल्ट (परिणाम)। मैजारिटी (Majority;अधिकतर) बीच भँवर में उलझ रहे हैं, लेकिन बाप कहते हैं यह सब बातें अपने मंजिल में आगे बढ़ने की गुड साइन (Good Signs;शुभ चिन्ह) समझो। जैसे विनाश को ‘गुड साइन’ कल्याणकारी कहते हो, यह परीक्षाएं भी परिपक्व करने का आधार है। मार्ग क्रास कर आगे बढ़ रहे हैं - यह निशानियां हैं। इस सब बातों को देखते हुए घबराओ मत। सदा यही एक संकल्प रखो कि अब मंजिल पर पहुँचे कि पहुँचे। समझा? जैसे बिजली की हलचल पसन्द नहीं आती, एक रस स्थिति पसन्द आती है, ऐसे बाप को भी बच्चों की एकरस स्थिति पसन्द आती है - यह प्रकृति खेल करती है लेकिन ऐसा खेल नहीं करना - सदा अचल, अटल, अड़ोल रहना।

ऐसे मास्टर नॉलेजफुल, सदा सक्सेसफुल (Successful;सफलतामूर्त्त) सदा हर्षित रहने वाले, माया के सर्व आकर्षण से परे रहने वाले, मंजिल के समीप पहुँची हुई आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

मेला सेवाधारी ग्रुप:-

कितना भविष्य जमा किया? सेवा का मेवा मिलता ही है अर्थात् जो करते हैं उसका पदमगुणा ज्यादा जमा हो जाता है। जैसे एक बीज डाला तो फल कितने निकलते, एक तो नहीं निकलता? बीज एक डाले, फल हर सीजन (Season;मौसम) में मिलता रहता। यह भी सेवा का मेवा पदम गुणा जमा हो जाता है और हर जन्म में मिलता रहता । मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों प्रकार की सेवा हरेक ने की? वाणी और कर्म की सेवा के साथ-साथ मन्सा शुभ संकल्प वा श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा भी बहुत सेवा कर सकते हो। अगर तीनों सेवाएं साथ-साथ नहीं तो फल इतना फलीभूत नहीं होगा। वर्तमान समय प्रमाण तीनों साथ-साथ होनी चाहिए - अलग-अलग नहीं। वाणी में भी शक्ति तब आती जब मन्सा शक्तिशाली हो। नहीं तो बोलने वाले पंडित समान हो जाते। पंडित लोग कथा कितनी बढ़िया करते, लेकिन पंडित क्यों कहते, क्योंकि तोते मुआफ़िक पढ़कर रिपीट (Repeat;दोहराते) करते हैं। ज्ञानी अर्थात् समझदार, समझ कर सर्विस करने से सफलता होगी। समझदार बच्चे तीनों प्रकार की सेवा साथ-साथ करेंगे। चित्र कानसेस (Conscious;चित्रों की ओर ध्यान) नहीं लेकिन बाप कानसेस (बाप की ओर ध्यान) हो तो तीनों ही सेवा साथ में हो जाएगी।

ड्यूटी (Duty;कर्त्तव्य) समझकर अगर सेवा करेंगे तो आत्माओं को आत्मिक स्मृति नहीं आएगी। वह भी एक सुनने की ड्यूटी समझ चले जाएंगे। अगर रहम दिल बन कल्याण की भावना रखकर सर्विस करते तो आत्माएं जाग्रत हो जातीं। उन्हों को भी अपने प्रति रहम आता है कि हम कुछ करें। बाप तो बच्चों को सदैव आगे बढ़ने का ईशारा देते। बाकी जितना किया वह ड्रामानुसार बहुत अच्छा मेहनत किया, समय दिया उससे वर्तमान भी हुआ और भविष्य भी जमा हुआ। अच्छा।